माई नेम इज खान को लेकर खूब हो हल्ला मचाया गया. मुंबई में तो हद ही हो गई. ठाकरे से पंगा लेकर खान बन गए किंग खान. सरकार भी उनके साथ हो गई. भाजपा भी किंग खान के पक्ष में दिखी. ऐसा लगा मानो किंग खान को अपने पक्ष में भुनाने की होड़ लग गई. बोल बोले जाने लगे. सबने अपने मन की बात कही. मीडिया ने भी इस बात को खूब नमक-मिर्च लगा कर परोसा. इस खेल में फायदा खान को हुआ. ठाकरे को हुआ. कुछ हद तक कांग्रेस सरकार को भी मिला. फिल्म को सिनेमा हॉलों में सुरक्षित करने के लिए सरकार ने सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए. अल्पसंख्यक समुदाय में संदेश गया कि सरकार ने उनका खास ख्याल रखा. एक किंग खान के बहाने कितनो को फायदा हो गया.इसी बीच दूध के दाम बढ़ गए. किसी को इसपर बात करने के लिए समय नहीं है.यह सब बवेला कौन लोग मचा रहे हैं!! उनको कौन सहयोग कर रहा है !! यह बताने की जरूरत नहीं है. शायद आप सभी लोग समझ रहे होंगे!!हाल ही में मेरी मुलाकात एक असल के रिज़वान से हुई. वे नून वेलफेयर नामक संस्था को चलाते हैं. चूंकि उनका नाम रिजवान है और माई नेम इज खान का हिरो भी रिजवान खान है, इसी साम्यता पर मैंने उनका विचार जानना चाहा. उन्होंने कहा रिजवानो के नाम पर इस देश को हमेशा से बांटने की कोशिश की जाती रही है. सरकार ने हमेशा से सही मसलों को दबाने के लिए इस तरह के मसलों को उभारने का काम किया है. खैर इस पूरे प्रकरण में ऊपर के सबको फायदा हुआ. अगर किसी को नुकसान हो रहा है तो वह है इंसानियत.
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sahi kah rahen hai aap.
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